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छत्तीसगढ़,,,,,छत्तीसगढ़िया मन आखिर कब तक अपन संस्कृति ल भूलाते रहू

गोबरधन/गोधन पूजा कब गोवर्धन हो गया
छत्तीसगढ़िया मन आखिर कब तक अपन संस्कृति ल भूलाते रहू
गोबर से घर लिपे जाते थे, गोबर से फर्श लिपे जाते थे, गोबर का चुल्हा, गोबर कि छेपडी, गोबर कि राख, गोबर कि खाद ।
सबसे महत्वपूर्ण अन्न भंडारण के लिए भी गोबर के छबाई…
गोबर इसलिए सबसे बड़ा धन था।
गोधन – बैल गाय इत्यादि(और इसकी वैल्यू तो जानते ही हो जब मशीनी इंजन नई था तो यही सहायक होते थे)……
गोबरधन पूजा अर्थात् गो रूपी धन की पूजा~ सुरोती के दूसरे दिन शुक्ल पक्ष के एक्कम को 🐂🐄🐂 गो रूपी धन की पूजा की जाती है, अपने-अपने घरों में बरा, सुन्हारी, नया चांवल का भात, कुम्हड़ा, जिमी कांदा, कोचई कांदा, डांग कांदा सभी को मिलाकर खिचड़ी के रूप में पशुधन को खिलाया जाता है, राउत के द्वारा गायों को सुहाई (माला) पहनाया जाता है…!
शाम को गांव के मुख्य द्वार में सभी जानवरों 🐂🐃🐄 को एक साथ रेंगाते हैं, जिसे गोबरधन खुंदाना कहते हैं… तादपश्चात खुंदे हुए पवित्र गोबर को एक दूसरे के माथे पर लगाके त्यौहार की बधाई देते हुए बड़ो से आशीर्वाद और छोटों को स्नेह आदान प्रदान करते हुए परंपरा का निवहन करते हैं। गोबरधन खुंदाते वक्त यह ध्यान दिया जाता है कि कौन सा पशु गाय या बैल, भैंस या भैंसा पंडवा या पंडिया, अगला या पिछला, दायां या बांया किस रंग का जानवर किस पैर से गोर्वधन को खुंदा है…?
इससे आने वाला अगले साल में कौन सी फसल अच्छी होगी, और बरसात कैसी रहेगी सियान लोग इसका अनुमान लगा लेते हैं…!
★ गोवर्धन नहीं,, गोबरधन/गोधन पूजा होता है….
गोबरधन/गोधन पूजा के आप जम्मो झनला गाड़ा गाड़ा जोहार बधाई शुभकामनाएं….💐

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